Your Sense Craving Can Limit Your Intelligence & Creativity? बुद्धिमान कैसे बनते हैं?

Do you know the root cause of all your pains and sufferings in life? It is the inability to control your sense attachments.

जब हम अपनी इंद्रियों के सामने समर्पण कर देते हैं, तो वे हमें नियंत्रित करने लगती हैं।

Lord Shri Krishna says

ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते | सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते || 62||

क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम: | स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || 63||

While contemplating on the objects of the senses, one develops attachment to them. Attachment leads to desire, and from desire arises anger.

इन्द्रियों के विषयों का चिंतन करते हुए मनुष्य उनमें आसक्त हो जाता है और आसक्ति कामना की ओर ले जाती है और कामना से क्रोध उत्पन्न होता है।

And the 2nd shloka says:

Anger leads to clouding of judgment, which results in bewilderment of memory. When memory is bewildered, the intellect gets destroyed; and when the intellect is destroyed, one is ruined.

क्रोध, निर्णय लेने की क्षमता को क्षीण करता है, जिसके कारण भ्रमित हो जाती है। जब स्मृति भ्रमित हो जाती है तब बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि के नष्ट होने से मनुष्य का पतन हो जाता है।

Anger, greed, lust, etc. are considered in the Vedic scriptures as mānas rog, or diseases of the mind. क्रोध, लालच, वासना आदि को वैदिक ग्रंथों में मानस रोग या मानसिक रोग कहा गया है।

 भगवान् श्री कृष्णा ने गीता में कहा है की

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।

कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌॥

काम, क्रोध तथा लोभ- ये तीन प्रकार के नरक के द्वार हैं | ये  आत्मा का नाश करने वाले अर्थात्‌ उसको अधोगति में ले जाने वाले हैं। अतएव इन तीनों को त्याग देना चाहिए ॥

यदि कामनाओं की तुष्टि में कोई बाधा उत्पन्न होती तब क्रोध की ज्वाला और अधिक भड़कती है। क्रोध अपने आप उत्पन्न नहीं होता। यह इच्छाओं की पूर्ति में बाधा आने से उत्पन्न होता है और इच्छाएँ कहाँ से उत्पन्न होती हैं, वे आसक्ति से उत्पन्न होती हैं और आसक्ति इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करने से उत्पन्न होती है।

तो शुरुआत होती है इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करने से|

The path of your own ruin begins with contemplation on the sense objects. Contemplation on sense objects leads to desire. Fulfillment of Desire leads to Greed. But obstruction of desire leads to Anger. Anger impairs judgment. The intellect gets clouded by the haze of emotions. When the intellect is clouded, it leads to the bewilderment of memory. The bewilderment of memory results in the destruction of the intellect. And since the intellect is the internal guide, when it gets destroyed, one is ruined.

 

और यहीं से अधोपतन आरम्भ हो जाता है| जब बुद्धि भ्रमित हो जाती है तब मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है।

भगवान् श्री कृष्ण उन सीढ़ियों की पूरी जानकारी दे रहे हैं की वे कौन सी सीढियाँ हैं जो मनुष्य को अधोगामी या पतन के मार्ग पर नीचे ले जाती हैं.

प्रारंभ सूक्ष्मतम से होता है और अंत में स्थूलतम हो जाता है।

महर्षि पतंजलि कहते हैं

अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः क्लेशाः॥२.३॥

अधोपतन की यात्रा शुरू होती है राग द्वेष से – मन ने देखा सुन्दर हैं—यात्रा शुरू हुई। सुंदर है, तो चाह है। चाह है, तो भोग है।

असल में जो कामी नहीं है, वह क्रोधी नहीं हो सकता। क्रोध क्यों आता है? क्रोध आता ही तब है, जब काम में बाधा पड़ती है, अन्यथा क्रोध नहीं आता। जब भी आपकी चाह में कोई बाधा डालता है—तभी क्रोध आता है। जो आप चाहते हैं, अगर वह होता चला जाए, तो क्रोध कभी नहीं आएगा।

आपका मन है आज बारिश हो रही है तो गोभी की पकौड़ियाँ खाने का. परन्तु आपकी पत्नी का मन कुछ और है। बस, इतना भी काफी है क्रोध के लिए। छोटी—छोटी अड़चनें चाह में खड़ी होती हैं।

असल में दो व्यक्ति साथ रहें तब भी उपद्रव है। और साथ न रहना भी उपद्रव है, क्योंकि चाह है। साथ न रहें, तो चाह पूरी नहीं हो सकती। और साथ रहें, तो भी पूरी नहीं हो पाती है क्यूंकि अडचने आती हैं।

When two people live together, there is a turmoil. But not living together is also an emotional turmoil, an emptiness, because there is a desire. If you don’t stay together, then your desire cannot be fulfilled. And even if you stay together, the desire is not completely fulfilled because there are obstacles.

भगवान् श्री कृष्ण से बड़ा कोई मनोवैज्ञानिक नहीं है| मनोविज्ञान का सत्य, तो यही है कि अगर दुनिया में स्त्री—पुरुष के आकर्षण को बढ़ाना हो, अगर मोह पैदा करना है तो स्त्री—पुरुष को एकदम मिल जाने में असुविधाएं खड़ी करो, खुली नग्नता का प्रदर्शन बंद करो, स्त्री के शारीर को ढांको, बाधाएं खड़ी करो|

हमारी पुरानी संस्कृति में स्त्री और पुरुष के बीच ज्यादा आकर्षण रहता था। अपनी ही पत्नी से मिलना मुश्किल होता था ! संयुक्त परिवार होता था| दिन भर पत्नी घूंघट में रहती थी| चेहरा देखने में भी बाधाएं थीं| बाधा रहने से आकर्षण जीवनभर खिंचता था। जीवनभर ही नहीं, जन्मों—जन्मों तक एक दुसरे को पा लेने का आकर्षण था। इसका secret क्या था? Secret यही था कि बाधाएं बहुत थीं।

भगवान् कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, जब बुद्धि का नाश हो जाता है, तो सब खो जाता है। फिर कुछ भी बचता नहीं। वह आदमी की परम दीनता है, वहां आदमी बिलकुल दिवालिया, बिलकुल bankrupt हो जाता है। यही असली दरिद्रता है। This is real poverty. This is spiritual poverty है, आध्यात्मिक दरिद्रता है।

लेकिन हम आध्यात्मिक दरिद्रता से जरा भी नहीं डरते केवल भौतिक दरिद्रता से बहुत डरते हैं, । हम बहुत डरते हैं कि एक पैसा न खो जाए। पर इससे नहीं डरते की आत्मा खो जाए।

We are only afraid of material poverty but we are not at all afraid of spiritual poverty. We are very afraid not to lose a penny but we are not afraid of losing our soul.

खोने की जो प्रक्रिया भगवान् कृष्‍ण ने कही, वह बहुत ही मनोवैज्ञानिक है। अभी लोग सोचते नहीं है कि इच्छाओं और कामनाओं के नीचे और गहरे में क्रोध है, क्रोध के बाद नीचे और गहरे में मोह है, मोह के और गहरे में स्मृति—नाश है, स्मृति—नाश के और गहरे में बुद्धि का विनाश है, बुद्धि के विनाश के और गहरे में स्वयं का पूर्णतया विनाश है।

और बस यही संपूर्ण मानव जीवन की यात्रा का सार है| This is the entire life path of the journey to self realization. जहाँ आपको अपने अज्ञान का बोध हो गया, वहीं से आपकी यात्रा शुरू हो गयी ज्ञान की तरफ। बस यही है आपकी संपूर्ण यात्रा from Finite to the Infinite|

We are all Spiritual warriors. The moment we are able to overcome our sense attractions, we start creating our own destiny. It is then We Start Designing An Extraordinary Life For Ourselves.

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

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