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NEW YEAR 2023 Resolution To Change Your Life By Removing The Source Of All Pains In Life? मोह के मायाजाल से कैसे बचें ? | Bhagavad Gita 2.52

Do you know, those whose intellect is illumined with spiritual knowledge no longer seek material sense pleasures, because they know that material sense pleasures eventually bring only misery?

भगवान श्री कृष्‍ण कहते हैं, इस मोह की निशा को जो छोड़ देता है और जिसकी बुद्धि वैराग्य को उपलब्ध हो जाती है, वही इस भवसागर से पार हो जाता है

Lord Shri Krishna says

यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति |

तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च || 52||

Shree Krishna says one whose intellect is illumined with spiritual knowledge no longer seeks material sense pleasures, knowing them to be harbingers of misery.

इसका अर्थ हुआ की जिनकी बुद्धि आध्यात्मिक ज्ञान से प्रकाशित है, वे यह जानते हैं कि सांसारिक सुख और इन्द्रिय तृप्ति दुखों के अग्रदूत हैं|

भगवान् श्री कृष्ण कहते है यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति  

भगवान् ने मोह की बात की है यहाँ| तो पहले यह समझ लें मोह क्या है? शरीर के प्रति अहंकार तथा शरीर के प्रति, अपने सम्बन्धियों के प्रति, माता पिता, स्त्री, पुत्र, के प्रति , वस्तु, पदार्थ धन संपत्ति आदि में ममता करना मोह है। हमें आपको जब अपनी पसंद की कोई वस्तु मिल जाती है, अथवा कोई प्रिय घटना घाट जाती है, तो हम प्रसन्न हो जाते हैं | और यदि कोई प्रतिकूल वस्तु प्राप्त होती है या अप्रिय घटना घटती है, तो मन उद्विग्न हो जाता है| बस यही  राग द्वेष, कलिल अर्थात् दलदल है। इस मोह रूपी दलदल में जब बुद्धि फँस जाती है तब मनुष्य किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। फिर उसे कुछ सूझता नहीं। और संसार में और अधिक फँसता चला जाता है। आप सब जानते हैं की आपके जीवन का उद्देश्य क्या है? Self Realization या कह लीजिये मोक्ष या कैवल्य | परन्तु हम में से ज्यादातर लोग इस परम लक्ष्य को ही भूल जाते हैं और संसार के आकर्षणों में फँस जाते हैं | इसी को भगवान श्री कृष्ण ने, बुद्धिका मोहरूपी कलिल में या दलदल में फँसना कहा है । हमें इस दलदल में न फँसकर, अपना कल्याण करना है|

बुद्धि पर पड़े इस अज्ञान रुपी आवरण को वेदान्त में माया की आवरण शक्ति कहा गया है। बुद्धि पर पड़े इस अज्ञान आवरण के कारण मन में दो धारणायें दृढ़ होती हैं : (पहली धारणा कि ) यह संसार ही  सत्य है और (दूसरी धारणा  ) की मैं ही यह शारीर हूँ, यह अनात्मा देह आदि ही में हूँ। यह दोनों धारणाएं ही असत्य हैं| तो इस श्लोक में भगवान् श्री कृष्णा ने यही बताया है, की कर्मयोग की भावना से कर्म करते रहने पर, बुद्धि की शुद्धि होती है, और तब बुद्धि के लिये सम्भव होता है, कि माया के इस आवरण को हटाकर, आत्मस्वरूप का साक्षात्कार कर सके।

भगवान श्री कृष्ण ने मोहरूपी कलिलसे तरनेके दो बड़े सुगम उपाय बताए हैं| विवेक और सेवा। विवेक तेज होता है तो वह असत् विषयोंसे अरुचि करा देता है। और दूसरा उपाय है दूसरोंकी सेवा करना| दूसरोंको सुख पहुँचानेकी धुन लग जाय तो अपने सुखआरामका त्याग करनेकी शक्ति आ जाती है। दूसरोंको सुख पहुँचानेका भाव जितना तेज होगा, उतना ही अपने सुखकी इच्छाका त्याग होगा। जैसे शिष्यकी गुरुके लिये, पुत्रकी मातापिताके लिये, सुख पहुँचानेकी इच्छा हो जाती है, तो उनकी अपने सुख आराम की इच्छा स्वतः मिट जाती है। 

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च |  यहाँ भगवान् ने दो शब्दों का उपयोग किया है, श्रुतस्य और श्रोतव्यस्य| मनुष्यने जितने भोगोंको भोग लिया है, अच्छी तरहसे अनुभव कर लिया है, उनको श्रुतस्य  कहा गया है। और जितने भोगों के बारे में सुना जा सकता है जैसे  स्वर्गलोक के सुख, ब्रह्मलोक के सुख, वे सब श्रोतव्यस्य हैं। भगवान् कहते हैं ही जब तेरी बुद्धि मोहरूपी दलदलको तर जायगी तब इन  श्रुत  अर्थात लौकिक और  श्रोतव्य  अर्थात पारलौकिक दोनों प्रकार के भोगों से तुझे वैराग्य हो जायगा।

मोहरूपी कालिमा से जब बुद्धि जागेगी, तब वैराग्य फलित होता है।

अंधकार का लक्षण क्या है? अंधकार का पहला लक्षण है कि दिखाई नहीं पड़ता, जहां देखना खो जाता है, जहा आंखों पर परदा पड़ जाता है ।

मोह में भी ऐसा ही घटित होता है। इसलिए मोह को अंधकार कहते हैं । मोह में जो हम करते हैं, वह ठीक ऐसा ही है, जैसे अंधेरे में कोई टटोलता हो। उसे कुछ पता नहीं होता, क्या कर रहे हैं! नहीं कुछ पता होता, कौन — सा मार्ग है! आंखें नहीं होती हैं। मोह अंधा है। और मोह का अंधापन आध्यात्मिक अंधापन है, This is Spiritual Blindness ।

एक आदमी के मकान में आग लग गई है। भीड़ इकट्ठी है। वह आदमी छाती पीटकर रो रहा है, चिल्ला रहा है, उसके जीवनभर की सारी संपदा नष्ट हुई जा रही है, जिसे उसने जीवन समझा है, वही नष्ट हुआ जा रहा है।

तभी पड़ोस में से एक लड़का दौड़ा हुआ आता है और कहता है, tum व्यर्थ रो रहे हो । तुम्हारे लड़के ने तो कल मकान बेच दिया था। बस, आंसू रुक गए। उस आदमी का छाती पीटना बंद हो गया। जहा रोना था, वहां वह हंसने लगा, मुस्‍कुराने लगा। सब एकदम बदल गया।

अभी भी आग लगी है, मकान जल रहा है; वैसा ही जैसा क्षणभर पहले जलता था। फर्क कहां पड़ गया? मकान अब मेरा नहीं रहा, अपना नहीं रहा। मोह का जो जोड़ था मकान से, वह टूट गया है। अब भी मकान में आग है, लेकिन अब आंख में आंसू नहीं हैं।

इस जीवन में मोह ही जलता है, मोह ही चिंतित होता है, मोह ही तनाव से भरता है, मोह ही संताप को उपलब्ध होता है, मोह ही भटकाता है, मोह ही गिराता है। मोह ही जीवन का दुख है।

मोह के अंधकार का जो गुणधर्म है, वह यह है कि जो मेरा नहीं है, वह मेरा प्रतीत  होता है। और जो मेरा है, वह मेरा नहीं लगता है। एक reversion, हो जाता है।

तो भगवान् कृष्ण कहते हैं, की जो इस मोह की कालिमा से मुक्त हो जाता है, वो व्यक्ति वैराग्य को उपलब्ध होता है।

सच तो यह है कि मैं, मेरे, इस अहं के कारण ही संसार है। जिस दिन मैं, मेरा नहीं रहा, उस दिन संसार भी नहीं रहेगा।

इसे ही भगवान् कृष्‍ण कहते हैं, इस जो मोह की निशा को छोड़ देता है और जिसकी बुद्धि वैराग्य को उपलब्ध हो जाती है, उसके जीवन में, उसके जीवन में ज्ञान का प्रकाश फलित होता है— आप उसे मोक्ष कह लें, उसे ज्ञान कहें, उसे आनंद कहें, उसे परमात्मा कहें, या उसे ब्रह्म कहें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यह सब केवल नामों के भेद हैं।

We are all Spiritual warriors. We must constantly keep fighting, our inner enemies of ego gratification and sense attraction. When our Buddhi our intellect becomes pure, and we are able to have equanimity of mind. This awareness, this equanimity alone can help us cultivate a single-minded focus and an unwavering resolve to perform our best Karma in this life. It is then we start creating our own destiny. It is then We Start Designing An Extraordinary Life For Ourselves.

 पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते

*पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते 

 शान्तिः शान्तिः शान्तिः 

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