क्या आप जानते है की एक बुद्धिमान व्यक्ति और एक मूर्ख व्यक्ति के बीच में क्या अंतर होता है? What is the difference between a Wise man and an ignorant person?
The ignorant man utilizes this life, only for pursuit of material goals while a really wise man, is indifferent to the attractions of Maya.
अज्ञानी मनुष्य, केवल भौतिक संपत्ति अर्जित करने में, अपना पूरा जीवन व्यर्थ गवां देते हैं|
Lord Shri Krishna says
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी |
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने: || 69||
जिसे सब लोग दिन समझते हैं वह एक आत्मसंयमी पुरुष के लिए, अज्ञानता की रात्रि है तथा जो सब जीवों के लिए रात्रि है, वह स्थितप्रज्ञ मुनियों के लिए दिन है।
What the normal human beings consider as day, is the night of ignorance for the wise, and what all people see as night, is the day for the introspective sage.
People often confuse the meaning of this verse by taking the words literally. What Lord Shree Krishna means to say is that, those who are in material consciousness, they consider material enjoyment as the real purpose of life. For such people, worldly pleasures and material success of life is like the day. But for those who are truly wise with divine knowledge, they know the truth, that sense enjoyment is harmful for the soul, and hence they view it as darkness or “night.”
जिन लोगों की चेतना लौकिक है, वे सांसारिक सुखों को ही जीवन का मुख्य लक्ष्य मानते हैं। उनके लिए सांसारिक सुख एवं जीवन की सफलता दिन के सामान है| ऐसे लोग इन्द्रिय सुख के आभाव को अंधकार अर्थात रात समझते हैं।
जो मनुष्य दिव्य ज्ञान से युक्त होकर बुद्धिमान हो जाते हैं, वे इन्द्रियों के विषय भोगों को, आत्मा के लिए हानिकारक मानते हैं। इसलिए वे इसे ‘रात्री’ के रूप में देखते हैं। वे आत्मा के उत्थान के लिए, इन्द्रियों के विषय भोगों से विरक्त रहते हैं, और इसलिए, वे रात्रि को ‘दिन’ के रूप में देखते हैं। भगवान् श्री श्रीकृष्ण ने रात्रि किसे माना है? रात्री वोह है जब आप को होश नहीं रहता, जब आप परमात्मा से विमुख रहते हैं| परमात्मा से विमुख होना ही अन्धकार है, रात्री है| और जब साधारण मनुष्य जागता है तो वह दिन भर भोग और संग्रहमें लगा रहता है, वह परमात्मा से विमुख ही रहता है| परन्तु विद्वान् मनुष्यों के लिए भोग और विलास, अन्धकार के सामान है|
भगवान् श्री कृष्णा कहते हैं या निशा सर्वभूतानाम् अर्थात जिनकी इन्द्रियाँ और मन वशमें नहीं हैं, जो भोगोंमें आसक्त है, वे सब सोये हुए हैं। वे सब परमात्म तत्त्व की तरफ से विमुख हैं, सोये हुए हैं|
रात्रि में हमें कुछ ठीक से दिखाई नहीं देता है| तो जब हमें यह न दिखाई पड़े, कि हम दुःख क्यों पा रहे हैं, जब हमें इस बात का ज्ञान ही न हो, कि हम संतापों में क्यूँ जल रहे हैं, जब हमें यह दिखाई ही न पड़े, की हम जो कुछ भी कर रहे हैं उसका परिणाम क्या होगा, तो वोह हमारे लिए रात्रि के सामान हे है|
भगवान् श्री कृष्णा कहते हैं तस्यां जागर्ति संयमी अर्थात मनुष्योंकी जो रात है, या यूँ कहिये की परमात्मा की तरफ से जो विमुखता है, अपने कल्याण की तरफ से जो विमुखता है, उसमें संयमी मनुष्य जागता है। संयमी मनुष्य कौन है? जिसने इन्द्रियों और मन को वशमें किया हुआ है, जो भोग और संग्रह में आसक्त नहीं है, जिसका ध्येय केवल परमात्मा है, वह है संयमी मनुष्य। परमात्म तत्त्व को, अपने स्वरूप को, इस संसार को यथार्थरूप से जानना ही उसका रातमें जागना है।
भगवान् श्री कृष्णा कहते हैं यस्यां जाग्रति भूतानि –अर्थात जो भोग और संग्रहमें बड़े सावधान रहते हैं, एक एक पैसे का हिसाब रखते हैं, जमीन के एक एक इंचका खयाल रखते है, उन्हें बस संपत्ति मिल जाये, वे चाहे न्यायपूर्वक हों अथवा अन्यायपूर्वक, उसमें वे बड़े खुश होते हैं| बस वे सांसारिक, क्षणभङ्गुर भोगोंको बटोरने में लगे रहते हैं।
भगवान् श्री कृष्णा कहते हैं *सा निशा पश्यतो मुनेः* – अर्थात जिन सांसारिक पदार्थोंका भोग और संग्रह करनेमें मनुष्य अपने आपको बड़ा चतुर मानता है, उसी को संयमी मनुष्य अन्धकार मानते हैं, उनकी दृष्टि में वह सब रात के समान है, बिलकुल अन्धकार है।
भगवान् कृष्ण का एक *दूसरा अर्थ भी है नींद में रहने का* | एक उदाहरण से समझियेगा| एक पति ऑफिस से घर आया है| और पत्नी एक ऐसा कडुवा शब्द बोल गई जिससे कलह शुरू हो गई है। पत्नी जानती है कि यह शब्द रोका जा सकता था। क्योंकि यह शब्द दस बार पहले भी बोला जा चुका है और इस शब्द को लेकर दस बार पहले भी कलह हो चुकी है। फिर यह आज क्यों बोला गया? यह नींद ही तो है, जिसमें पत्नी बोल गई। कल फिर बोलेगी, परसों फिर बोलेगी। वह नींद चलेगी। वह रोज वही बोलेगी और रोज वही होगा। पति भी रोज वही उत्तर देगा।
ये नींद में चलते हुए लोग-वही क्रोध, वही काम, वही दुख, वही पीड़ा, वही चिंता-सब वही। रोज उठते हैं और वही दोहराते हैं। जैसे सब बंधी हुई मशीन की तरह। We keep on responding to situations the same way out of our reflex action, without thinking, without being awake.
यह नींद ही तो है। यह भगवान् कृष्ण का दूसरा अर्थ है। जागा हुआ पुरुष ऐसा नहीं करेगा, वोह सोच समझ कर करेगा।
एक तीसरा अर्थ भी है इस श्लोक का
नींद का अर्थ है अहंकार | अहंकार हमेशा नींद के ही केंद्र में होता है। Ego consciousness is at the center of sleeping consciousness. और इसके विपरीत, Egolessness, निरअहंकार भाव, वोह जागृत अवस्था है मनुष्य की।
In other words Release of Ego Consciousness is True awakening.
The moment you release your ego, your awakening starts. An egoist person is a sleeping person. But a person who has risen above ego, is truly awake. जागा हुआ आदमी ईगोलेस, निरहंकारी होता है | अहंकार का विसर्जन ही जागरण है|
और बस यही संपूर्ण मानव जीवन की यात्रा का सार है| This is the entire life path of the journey to self realization.
We are all Spiritual warriors. The moment we are able to overcome our sense attraction, we start creating our own destiny. It is then We Start Designing An Extraordinary Life For Ourselves.
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥