क्या आप जानते हैं की मन को नियंत्रित करने की एकमात्र कुंजी कौन सी है? What is the secret of The Secret to Focus & Control Your Mind? It is by the right use of the faculty of Intellect or Buddhi. Bhagwaan Shri Krishna has now started revealing Buddhi Yoga or Karma Yoga. Lord Shri Krishna says that In Karma Yoga even the highest achievement of Self-realization is possible because the man works with single-pointed determination with a concentrated mind.
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं की कर्मयोग के द्वारा आत्म-साक्षात्कार भी प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि इसमें मनुष्य एकाग्रचित्त होकर कार्य करता है।
Lord Shri Krishna says
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन |
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् || 41||
Bhagwaan Shri Krishna says कुरुनन्दन O Kurunanadan, The बुद्धि or intellect of those who are on this path which means the path of Karma Yoga, are व्यवसायात्मिका resolute in purpose, and their aim is one. But the intellect of those who are अव्यवसायिनाम् or irresolute is बहुशाखा or many-branched.
भगवान् कहते हैं, जो इस मार्ग का अनुसरण करते हैं, अर्थात जो कर्मयोग के मार्ग पर चलते हैं, उनकी बुद्धि निश्चयात्मक होती है और उनका लक्ष्य एक होता है लेकिन जो मनुष्य संकल्पहीन होते हैं उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं मे विभक्त रहती है। निश्चयात्मिका बुद्धि कैसी होती है ? ऐसी बुद्धि जो एकनिष्ठ है, जो आत्मनिष्ठ है, जो आत्मज्ञाननिष्ठ है, जो सत्यनिष्ठ होती है; परन्तु अनिश्चित चित्त वाले मनुष्यों की बुद्धियाँ अनेक शाखाओं वाली होती हैं ।
यहाँ एक शब्द का उपयोग किया है भगवान् श्री कृष्ण ने “व्यवसायात्मिका बुद्धि| वह बुद्धि जो व्यवसाय में उन्नति कराती है, जो लाभ प्राप्त कराने वाली होती है, वह बुद्धि केवल एक ही होती है| एकाग्र बुद्धि| परन्तु अव्यवसायी बुद्धि होती है जो हानि करने वाली बुद्धि या संकल्प रहित बुद्धि होती है|
व्यवसायात्मिका बुद्धि का एक और अर्थ है| व्यवसाय में जब लाभ की बात होती है तो हम भ्रमित हो सकते हैं | क्योंकि कलियुग में लाभ को केवल व्यक्तिगत रूप से देखा जाता है फिर चाहे इसमें दूसरे व्यक्ति का नुकसान ही क्यूँ न हो रहा | परन्तु भारतीय सभ्यता में शुभ-लाभ कहा जाता है | आपने देखा होगा दीपावली पूजन पर, माँ लक्ष्मी के पूजन पर शुभ-लाभ कहा जाता है| शुभ लाभ का अर्थ है वह लाभ जो सभी के लिए शुभ हो, जिसमे किसी की हानि न छिपि हो| अतः जो बुद्धि सभी का लाभ कराये उसके नियम कायदे सरल व एक समान होते हैं| यह बुद्धि हमें परिश्रम तथा संतोष का मार्ग दिखाती है | वह बुद्धि निश्चल मन, शुद्ध मन, निर्मल मन प्रदान करने वाली होती है| ऐसी बुद्धि हमें ईश्वर से मिलाती है | परन्तु अव्यवसायी बुद्धि हमें अनीति, असंतोष, आलस्य, इर्ष्या आदि न जाने कितने पथभ्रष्ट करने वाले मार्गों में ले जाएगी | अव्यवसायी बुद्धि हमें अनीति और अशांति का ही मार्ग दिखाएगी| व्यवसायात्मिका बुद्धि का सदुपयोग जब हम जन कल्याण के कार्यों में करेंगे तो हमारे वो कर्म अत्यंत शुभ फलदायी होंगे. आप इस संसार के सबसे धनवान लोगों को देख लीजिये. उन सबमें एक मानसिकता common मिलेगी और वोह है पहले सेवा भाव. सेवा भाव पहले होना चाहिए, मेवा तो कर्म अनुरूप मिलेगी ही वोह तो कर्म का सिद्धांत है. पर पहले आपका उद्देश्य सेवा देने का होना चाहिए
ईश्वर में दृढ़ विश्वास होगा तो मन और बुद्धि एकाग्र रहेंगे | जिस व्यक्ति का संकल्प दृढ़ होगा और बुद्धि केंद्रित होगी, तो उसका ध्यान भले ही सैकड़ों चीजों में लगा हुआ हो सकता है परन्तु उसका चित्त केवल ईश्वर में ही दृढ़ता से लगा रहता है। और उस भाव में वह अपने आस-पास के सभी लोगों में ईश्वर को ही देखता है, वह जो कुछ भी करता है उसमें भी ईश्वर को ही देखता है। यह है अटल आस्था । वह अपने कर्मों का फल भगवान को अर्पण करता है।
So Lord Shri Krishna is bringing the intellect or Buddhi into the topic of attachment? And there is a very strong reason why he introduces the concept of Buddhi here.
Our Manas or mind along with Chitta, Ahamkara, and Buddhi or Intellect all together constitute our Antahkarana. Our Antaḥkarna receives the sensations through our senses and decides what is good and bad for us, what is harmful and what is beneficial for us. But we must remember one thing, that Intellect is superior to the mind. It controls the mind. So when the Intellect is strong, or we say Buddhi is pure, the mind would follow whatever Intellect guides it to do.
इसलिए जो बुद्धि कहेगी, मानस उसी दिशा में जायेगा. परन्तु जैसे ही बुद्धि भ्रष्ट हुई, या आपने बुद्धि के अपेक्षा अपने अहम्, अपने राग और द्वेष की बात माननी शुरू कर दी, उसी समय से आप अपनी वासनाओं के गुलाम बन जायेंगे.
So If you wish to achieve fulfillment, success, and peace in life, you must purify the intellect with true knowledge and use it to control & guide the mind in the proper direction. Buddhi yoga is the art of detaching the mind from the fruits of actions. It is the art of surrendering the results of our Karmas to God.
बुद्धियोग मन को कर्म फलों से विरक्त रखने का विज्ञान है| यह विज्ञानं बुद्धि में यह दृढ़ निश्चय विकसित करता है कि सभी कार्य भगवान के सुख के निमित्त हैं। यदि कोई पुरुष या स्त्री यह संकल्प लेते है-” कि चाहें मेरे मार्ग में लाखों बाधाएँ उत्पन्न हो जाएँ और चाहें सारा संसार मेरी निंदा करे और चाहें मुझे अपने जीवन का भी बलिदान क्यों न करना पड़े तब भी मैं अपनी साधना नहीं छोडूंगा/छोडूंगी।
ऐसा साधक ही साधना की उच्च अवस्था को प्राप्त करता है और उसका संकल्प इतना अधिक दृढ़ हो जाता है कि साधक को अपने मार्ग पर चलने से कोई डिगा नहीं सकता|
We are all Spiritual warriors. We must constantly keep fighting, our inner enemies of ego gratification and sense attractions. When our intellect becomes pure, Our Buddhi is able to start controlling the lower mind. Our purified Buddhi keeps the mind away from worldly distractions and from the waves of emotional disturbances. This evolved intellect alone can help us cultivate a single-minded focus and an unwavering resolve to achieve all our biggest goals in life. It is then we start re-writing our own destiny. It is then We Start Designing An Extraordinary Life For Ourselves.
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥